Aah Vedna Mili Vidai Kavita - Jaishankar Prasad II आह ! वेदना मिली विदाई -जयशंकर प्रसाद


Aah Vedna Mili Vidai Kavita - Jaishankar Prasad II आह ! वेदना मिली विदाई -जयशंकर प्रसाद

आह ! वेदना मिली विदाई -जयशंकर प्रसाद

आह ! वेदना मिली विदाई
 मैंने भ्रमवश जीवन संचित,
मधुकरियों की भीख लुटाई।

 छलछल थे संध्या के श्रमकण,
आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण,
मेरी यात्रा पर लेती थी
 नीरवता अनंत अँगड़ाई।

 श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,
गहन-विपिन की तरु छाया में,
पथिक उनींदी श्रुति में किसने
 यह विहाग की तान उठाई?

लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी,
रही बचाए फिरती कब की,
मेरी आशा आह ! बावली
 तूने खो दी सकल कमाई।

 चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर,
प्रलय चल रहा अपने पथ, 
मैंने निज दुर्बल पद-बल पर
 उससे हारी-होड़ लगाई।

 लौटा लो यह अपनी थाती,
मेरी करुणा हा-हा खाती,
विश्व ! न सँभलेगी यह मुझसे
 इसने मन की लाज गँवाई।

Aah Vedna Mili Vidai Kavita - Jaishankar Prasad II आह ! वेदना मिली विदाई -जयशंकर प्रसाद

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