Kitne din Jivan Jal Nidhi Mein Kavita - Jaishankar Prasad II कितने दिन जीवन जल-निधि में- जयशंकर प्रसाद


Kitne din Jivan Jal Nidhi Mein Kavita - Jaishankar Prasad II कितने दिन जीवन जल-निधि में- जयशंकर प्रसाद

कितने दिन जीवन जल-निधि में- जयशंकर प्रसाद
कितने दिन जीवन जल-निधि में -
विकल अनिल से प्रेरित होकर
 लहरी, कूल चूमने चल कर
 उठती गिरती सी रुक-रुक कर
 सृजन करेगी छवि गति-विधि में !
कितनी मधु- संगीत- निनादित
 गाथाएँ निज ले चिर-संचित
 तस्ल तान गावेगी वंचित !
 पागल - सी इस पथ निरवधि में!
दिनकर हिमकर तारा के दल
 इसके मुकुर वक्ष में निर्मल
 चित्र बनायेंगे निज चंचल !
 आशा की माधुरी अवधि में !

Kitne din Jivan Jal Nidhi Mein Kavita - Jaishankar Prasad II कितने दिन जीवन जल-निधि में- जयशंकर प्रसाद

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  1. वसुधा के अंचल पर- जयशंकर प्रसाद
  2. अपलक जगती हो एक रात- जयशंकर प्रसाद
  3. जगती की मंगलमयी उषा बन- जयशंकर प्रसाद
  4. चिर संचित कंठ से तृप्त-विधुर - जयशंकर प्रसाद
  5. काली आँखों का अंधकार- जयशंकर प्रसाद
  6. अरे कहीं देखा है तुमने- जयशंकर प्रसाद
  7. शशि-सी वह सुन्दर रूप विभा- जयशंकर प्रसाद
  8. अरे!आ गई है भूली-सी- जयशंकर प्रसाद
  9. निधरक तूने ठुकराया तब- जयशंकर प्रसाद
  10. ओ री मानस की गहराई- जयशंकर प्रसाद
  11. मधुर माधवी संध्या में- जयशंकर प्रसाद
  12. अंतरिक्ष में अभी सो रही है- जयशंकर प्रसाद
  13. शेरसिंह का शस्त्र समर्पण- जयशंकर प्रसाद
  14. पेशोला की प्रतिध्वनि- जयशंकर प्रसाद
  15. मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं -गोपालदास नीरज
  16. दिया जलता रहा - गोपालदास नीरज
  17. तुम ही नहीं मिले जीवन में -गोपालदास नीरज
  18. दो गुलाब के फूल छू गए जब से होठ अपावन मेरे -गोपालदास नीरज
  19. जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना -गोपालदास नीरज
  20. खग ! उडते रहना जीवन भर! -गोपालदास नीरज
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