Antriksh Mein abhi so rahi hai kavita - Jaishankar Prasad II अंतरिक्ष में अभी सो रही है- जयशंकर प्रसाद
Antriksh Mein abhi so rahi hai kavita - Jaishankar Prasad II अंतरिक्ष में अभी सो रही है- जयशंकर प्रसाद


अंतरिक्ष में अभी सो रही है- जयशंकर प्रसाद

अंतरिक्ष में अभी सो रही है उषा मधुबाला ,
अरे खुली भी अभी नहीं तो प्राची की मधुशाला .
 सोता तारक-किरन-पुलक रोमावली मलयज वात,
 लेते अंगराई नीड़ों में अलस विहंग मृदु गात ,
रजनि रानी की बिखरी है म्लान कुसुम की माला,
अरे भिखारी! तू चल पड़ता लेकर टुटा प्याला .
 गूंज उठी तेरी पुकार- 'कुछ मुझको भी दे देना-
 कन-कन बिखरा विभव दान कर अपना यश ले लेना.'
दुख-सुख के दोनों डग भरता वहन कर रहा गात,
जीवन का दिन पथ चलने में कर देगा तू रात ,
 तू बढ़ जाता अरे अकिंचन,छोड़ करुण स्वर अपना ,
 सोने वाले जग कर देंखें अपने सुख का सपना .

Antriksh Mein abhi so rahi hai kavita - Jaishankar Prasad II अंतरिक्ष में अभी सो रही है- जयशंकर प्रसाद

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