Komal Kusumo Ki Badhur Raat Kavita - Jaishankar Prasad II कोमल कुसुमों की मधुर रात- जयशंकर प्रसाद


Komal Kusumo Ki Madhur Raat Kavita - Jaishankar Prasad II कोमल कुसुमों की मधुर रात- जयशंकर प्रसाद

कोमल कुसुमों की मधुर रात- जयशंकर प्रसाद
कोमल कुसुमों की मधुर रात !
 शशि - शतदल का यह सुख विकास,
 जिसमें निर्मल हो रहा हास,
 उसकी सांसो का मलय वात !
कोमल कुसुमों की मधुर रात !
 वह लाज भरी कलियाँ अनंत,
 परिमल - घूँघट ढँक रहा दन्त,
 कंप-कंप चुप-चुप कर रही बात.
कोमल कुसुमों की मधुर रात !
 नक्षत्र-कुमुद की अलस माल,
 वह शिथिल हँसी का सजल जाल-
 जिसमें खिल खुलते किरण पात .
कोमल कुसुमों की मधुर रात !
 कितने लघु-लघु कुडलम अधीर,
 गिरते बन शिशिर - सुगंध - नीर ,
 हों रहा विश्व सुख - पुलक गात .

Komal Kusumo Ki Madhur Raat Kavita - Jaishankar Prasad II कोमल कुसुमों की मधुर रात- जयशंकर प्रसाद

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