Are Kahi Dekha hai Tumne - Jaishankar Prasad II अरे कहीं देखा है तुमने- जयशंकर प्रसाद


Are Kahi Dekha hai Tumne - Jaishankar Prasad II अरे कहीं देखा है तुमने- जयशंकर प्रसाद

अरे कहीं देखा है तुमने- जयशंकर प्रसाद

 अरे कहीं देखा है तुमने
 मुझे प्यार करने वालों को?
 मेरी आँखों में आकर फिर
 आँसू बन ढरने वालों को?
 सूने नभ में आग जलाकर
 यह सुवर्ण-सा ह्रदय गला कर
 जीवन-संध्या को नहलाकर
 रिक्त जलधि भरने वालों को?
 रजनी के लघु-लघु तम कन में
 जगती की ऊष्मा के वन में
 उसपर परते तुहिन सघन में
 छिप, मुझसे डरने वालों को?
 निष्ठुर खेलों पर जो अपने
 रहा देखता सुख के सपने
 आज लगा है क्यों वह कंपने
 देख मौन मरने वाले को?

Are Kahi Dekha hai Tumne - Jaishankar Prasad II अरे कहीं देखा है तुमने- जयशंकर प्रसाद

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