Shashi Si Wah Sundar Roop Vibha Kavita - Jaishankar Prasad II शशि-सी वह सुन्दर रूप विभा- जयशंकर प्रसाद

Shashi Si Wah Sundar Roop Vibha Kavita - Jaishankar Prasad II शशि-सी वह सुन्दर रूप विभा- जयशंकर प्रसाद

शशि-सी वह सुन्दर रूप विभा- जयशंकर प्रसाद
 शशि सी वह सुंदर रूप विभा
 छाहे न मुझे दिखलाना.
उसकी निर्मल शीतल छाया
 हिमकन को बिखरा जाना.
संसार स्वप्न बनकर दिन-सा
 आया है नहीं जगाने,
मेरे जीवन के सुख निशीथ!
 जाते जाते रुक जाना.
हाँ इन जाने की घड़ियों में,
 कुछ ठहर नहीं जाओगे?
छाया पाठ में विश्राम नहीं,
 है केवल चलते जाना.
मेरा अनुराग फैलने दो,
 नभ के अभिनव कलरव में,
जाकर सूनेपन के तम में -
 बन किरण कभी आ जाना.

Shashi Si Wah Sundar Roop Vibha Kavita - Jaishankar Prasad II शशि-सी वह सुन्दर रूप विभा- जयशंकर प्रसाद

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