Le Chal Vahan Bhulawa Dekhar Kavita - Jaishankar Prasad II ले चल वहाँ भुलावा देकर- जयशंकर प्रसाद
ले चल वहाँ भुलावा देकर- जयशंकर प्रसाद
ले चल वहाँ भुलावा देकर
मेरे नाविक ! धीरे-धीरे ।
जिस निर्जन में सागर लहरी,
अम्बर के कानों में गहरी,
निश्छल प्रेम-कथा कहती हो-
तज कोलाहल की अवनी रे ।
जहाँ साँझ-सी जीवन-छाया,
ढीली अपनी कोमल काया,
नील नयन से ढुलकाती हो-
ताराओं की पाँति घनी रे ।
जिस गम्भीर मधुर छाया में,
विश्व चित्र-पट चल माया में,
विभुता विभु-सी पड़े दिखाई-
दुख-सुख बाली सत्य बनी रे ।
श्रम-विश्राम क्षितिज-वेला से
जहाँ सृजन करते मेला से,
अमर जागरण उषा नयन से-
बिखराती हो ज्योति घनी रे !
Le Chal Vahan Bhulawa Dekhar Kavita - Jaishankar Prasad II ले चल वहाँ भुलावा देकर- जयशंकर प्रसाद
Read More:
- निज अलकों के अंधकार में- जयशंकर प्रसाद
- मधुप गुनगुनाकर कह जाता- जयशंकर प्रसाद
- अरी वरुणा की शांत कछार- जयशंकर प्रसाद
- हे सागर संगम अरुण नील- जयशंकर प्रसाद
- उस दिन जब जीवन के पथ में- जयशंकर प्रसाद
- आँखों से अलख जगाने को- जयशंकर प्रसाद
- आह रे,वह अधीर यौवन- जयशंकर प्रसाद
- तुम्हारी आँखों का बचपन- जयशंकर प्रसाद
- अब जागो जीवन के प्रभात- जयशंकर प्रसाद
- कोमल कुसुमों की मधुर रात- जयशंकर प्रसाद
- कितने दिन जीवन जल-निधि में- जयशंकर प्रसाद
- मेरी आँखों की पुतली में- जयशंकर प्रसाद
- मेरी आँखों की पुतली में- जयशंकर प्रसाद
- जग की सजल कालिमा रजनी- जयशंकर प्रसाद
- वसुधा के अंचल पर- जयशंकर प्रसाद
- अपलक जगती हो एक रात- जयशंकर प्रसाद
- जगती की मंगलमयी उषा बन- जयशंकर प्रसाद
- चिर संचित कंठ से तृप्त-विधुर - जयशंकर प्रसाद
- काली आँखों का अंधकार- जयशंकर प्रसाद
- अरे कहीं देखा है तुमने- जयशंकर प्रसाद
- शशि-सी वह सुन्दर रूप विभा- जयशंकर प्रसाद
- अरे!आ गई है भूली-सी- जयशंकर प्रसाद
- निधरक तूने ठुकराया तब- जयशंकर प्रसाद
- ओ री मानस की गहराई- जयशंकर प्रसाद
- मधुर माधवी संध्या में- जयशंकर प्रसाद
- अंतरिक्ष में अभी सो रही है- जयशंकर प्रसाद
- शेरसिंह का शस्त्र समर्पण- जयशंकर प्रसाद
- पेशोला की प्रतिध्वनि- जयशंकर प्रसाद
- मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं -गोपालदास नीरज
- दिया जलता रहा - गोपालदास नीरज