Aankho se Alakh Jagane ko Kavita - Jaishankar Prasad II आँखों से अलख जगाने को- जयशंकर प्रसाद
Aankho se Alakh Jagane ko Kavita - Jaishankar Prasad II आँखों से अलख जगाने को- जयशंकर प्रसाद

आँखों से अलख जगाने को- जयशंकर प्रसाद

आँखों से अलख जगाने को,
 यह आज भैरवी आई है .
उषा-सी आँखों में कितनी,
 मादकता भरी ललाई है .
कहता दिगन्त से मलय पवन
 प्राची की लाज भरी चितवन-
है रात घूम आई मधुबन ,
 यह आलस की अंगराई है .
लहरों में यह क्रीड़ा-चंचल,
 सागर का उद्वेलित अंचल .
है पोंछ रहा आँखें छलछल,
 किसने यह चोट लगाई है ?

Aankho se Alakh Jagane ko Kavita - Jaishankar Prasad II आँखों से अलख जगाने को- जयशंकर प्रसाद

Read More:

  1. आह रे,वह अधीर यौवन- जयशंकर प्रसाद
  2. तुम्हारी आँखों का बचपन- जयशंकर प्रसाद
  3. अब जागो जीवन के प्रभात- जयशंकर प्रसाद
  4. कोमल कुसुमों की मधुर रात- जयशंकर प्रसाद
  5. कितने दिन जीवन जल-निधि में- जयशंकर प्रसाद
  6. मेरी आँखों की पुतली में- जयशंकर प्रसाद
  7. मेरी आँखों की पुतली में- जयशंकर प्रसाद
  8. जग की सजल कालिमा रजनी- जयशंकर प्रसाद
  9. वसुधा के अंचल पर- जयशंकर प्रसाद
  10. अपलक जगती हो एक रात- जयशंकर प्रसाद
  11. जगती की मंगलमयी उषा बन- जयशंकर प्रसाद
  12. चिर संचित कंठ से तृप्त-विधुर - जयशंकर प्रसाद
  13. काली आँखों का अंधकार- जयशंकर प्रसाद
  14. अरे कहीं देखा है तुमने- जयशंकर प्रसाद
  15. शशि-सी वह सुन्दर रूप विभा- जयशंकर प्रसाद
  16. अरे!आ गई है भूली-सी- जयशंकर प्रसाद
  17. निधरक तूने ठुकराया तब- जयशंकर प्रसाद
  18. ओ री मानस की गहराई- जयशंकर प्रसाद
  19. मधुर माधवी संध्या में- जयशंकर प्रसाद
  20. अंतरिक्ष में अभी सो रही है- जयशंकर प्रसाद

Previous Post Next Post