Atmakathya Kavita  - Jaishankar Prasad II आत्‍मकथ्‍य -जयशंकर प्रसादAtmakathya Kavita  - Jaishankar Prasad II आत्‍मकथ्‍य -जयशंकर प्रसादAtmakathya Kavita  - Jaishankar Prasad II आत्‍मकथ्‍य -जयशंकर प्रसादAtmakathya Kavita  - Jaishankar Prasad II आत्‍मकथ्‍य -जयशंकर प्रसादAtmakathya Kavita  - Jaishankar Prasad II आत्‍मकथ्‍य -जयशंकर प्रसादAtmakathya Kavita  - Jaishankar Prasad II आत्‍मकथ्‍य -जयशंकर प्रसादAtmakathya Kavita  - Jaishankar Prasad II आत्‍मकथ्‍य -जयशंकर प्रसाद

Atmakathya Kavita  - Jaishankar Prasad II आत्‍मकथ्‍य -जयशंकर प्रसाद

आत्‍मकथ्‍य -जयशंकर प्रसाद

मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
 इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य जीवन-इतिहास, 
यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्‍यंग्‍य मलिन उपहास, 
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।

 तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती, 
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही ख़ाली करने वाले, 
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
 यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं, 
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।

 उज्‍ज्‍वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की, 
अरे खिल-खिलाकर हँसने वाली उन बातों की, 
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्‍वप्‍न देखकर जाग गया।
 आलिंगन में आते-आते मुसक्‍या कर जो भाग गया, 
जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्‍दर छाया में, 
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

 उसकी स्‍मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की, 
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्‍यों मेरी कथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्‍या यह अच्‍छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्‍या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्‍मकथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्‍यथा।

Atmakathya Kavita  - Jaishankar Prasad II आत्‍मकथ्‍य -जयशंकर प्रसाद

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