Tum Kanak Kiran ke Antral Kavita - Jaishankar Prasad II तुम कनक किरन -जयशंकर प्रसाद


Tum Kanak Kiran ke Antral Kavita - Jaishankar Prasad II तुम कनक किरन -जयशंकर प्रसाद 

तुम कनक किरन -जयशंकर प्रसाद 

तुम कनक किरन के अंतराल में
 लुक छिप कर चलते हो क्यों ?

नत मस्तक गर्व वहन करते
 यौवन के घन रस कन झरते
 हे लाज भरे सौंदर्य बता दो
 मौन बने रहते हो क्यो?

अधरों के मधुर कगारों में
 कल कल ध्वनि की गुंजारों में
 मधु सरिता सी यह हंसी तरल
 अपनी पीते रहते हो क्यों?

बेला विभ्रम की बीत चली
 रजनीगंधा की कली खिली
 अब सांध्य मलय आकुलित दुकूल
 कलित हो यों छिपते हो क्यों?

Tum Kanak Kiran ke Antral Kavita - Jaishankar Prasad II तुम कनक किरन -जयशंकर प्रसाद 

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