Do Bunden Kavita - Jaishankar Prasad II दो बूँदें -जयशंकर प्रसाद


Do Bunden Kavita - Jaishankar Prasad II दो बूँदें -जयशंकर प्रसाद 

दो बूँदें -जयशंकर प्रसाद 

शरद का सुंदर नीलाकाश

 निशा निखरी, था निर्मल हास

 बह रही छाया पथ में स्वच्छ

 सुधा सरिता लेती उच्छ्वास

 पुलक कर लगी देखने धरा

 प्रकृति भी सकी न आँखें मूंद

 सु शीतलकारी शशि आया

 सुधा की मनो बड़ी सी बूँद !

Do Bunden Kavita - Jaishankar Prasad II दो बूँदें -जयशंकर प्रसाद 

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  10. आँखों से अलख जगाने को- जयशंकर प्रसाद
  11. आह रे,वह अधीर यौवन- जयशंकर प्रसाद
  12. तुम्हारी आँखों का बचपन- जयशंकर प्रसाद
  13. अब जागो जीवन के प्रभात- जयशंकर प्रसाद
  14. कोमल कुसुमों की मधुर रात- जयशंकर प्रसाद
  15. कितने दिन जीवन जल-निधि में- जयशंकर प्रसाद
  16. मेरी आँखों की पुतली में- जयशंकर प्रसाद
  17. मेरी आँखों की पुतली में- जयशंकर प्रसाद
  18. जग की सजल कालिमा रजनी- जयशंकर प्रसाद
  19. वसुधा के अंचल पर- जयशंकर प्रसाद
  20. अपलक जगती हो एक रात- जयशंकर प्रसाद
  21. जगती की मंगलमयी उषा बन- जयशंकर प्रसाद
  22. चिर संचित कंठ से तृप्त-विधुर - जयशंकर प्रसाद

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