Do Bunden Kavita - Jaishankar Prasad II दो बूँदें -जयशंकर प्रसाद
दो बूँदें -जयशंकर प्रसाद
शरद का सुंदर नीलाकाश
निशा निखरी, था निर्मल हास
बह रही छाया पथ में स्वच्छ
सुधा सरिता लेती उच्छ्वास
पुलक कर लगी देखने धरा
प्रकृति भी सकी न आँखें मूंद
सु शीतलकारी शशि आया
सुधा की मनो बड़ी सी बूँद !
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- मेरी आँखों की पुतली में- जयशंकर प्रसाद
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