Tulsidas Ji Ki Kavita II तुलसीदास की कविताएं
देव! दूसरो कौन दीनको दयालु -तुलसीदास
देव! दूसरो कौन दीनको दयालु।
सीलनिधान सुजान-सिरोमनि,
सरनागत-प्रिय प्रनत-पालु॥१॥
को समरथ सर्बग्य सकल प्रभु,
सिव-सनेह मानस-मरालु।
को साहिब किये मीत प्रीतिबस,
खग निसिचर कपि भील-भालु॥२॥
नाथ, हाथ माया-प्रपंच सब,
जीव-दोष-गुन-करम-कालु।
तुलसीदास भलो पोच रावरो,
नेकु निरखि कीजिये निहालु॥३॥
Tulsidas Ji Ki Kavita II तुलसीदास की कविताएं
तऊ न मेरे अघ अवगुन गनिहैं -तुलसीदास
तऊ न मेरे अघ अवगुन गनिहैं।
जौ जमराज काज सब परिहरि इहै ख्याल उर अनिहैं॥१॥
चलिहैं छूटि, पुंज पापिनके असमंजस जिय जनिहैं।
देखि खलल अधिकार प्रभूसों, मेरी भूरि भलाई भनिहैं॥२॥
हँसि करिहैं परतीत भक्तकी भक्त सिरोमनि मनिहैं।
ज्यों त्यों तुलसीदास कोसलपति, अपनायहि पर बनिहैं॥३॥
Tulsidas Ji Ki Kavita II तुलसीदास की कविताएं
लाभ कहा मानुष-तनु पाये -तुलसीदास
लाभ कहा मानुष-तनु पाये।
काय-बचन-मन सपनेहु कबहुँक घटत न काज पराये॥१॥
जो सुख सुरपुर नरक गेह बन आवत बिनहि बुलाये।
तेहि सुख कहँ बहु जतन करत मन समुझत नहिं समुझाये॥२॥
पर-दारा परद्रोह, मोह-बस किये मूढ़ मन भाये।
गरभबास दुखरासि जातना तीब्र बिपति बिसराये॥३॥
भय,निद्रा, मैथुन, अहार सबके समान जग जाये।
सुर दुरलभ तनु धरि न भजे हरि मद अभिमान गँवाये॥४॥
गई न निज-पर बुद्धि सुद्ध ह्वै रहे राम-लय लाये।
तुलसीदास यह अवसर बीते का पुनिके पछिताये॥५॥
Tulsidas Ji Ki Kavita II तुलसीदास की कविताएं
धनुर्धर राम -तुलसीदास
सुभग सरासन सायक जोरे॥
खेलत राम फिरत मृगया बन, बसति सो मृदु मूरति मन मोरे॥
पीत बसन कटि, चारू चारि सर, चलत कोटि नट सो तृन तोरे।
स्यामल तनु स्रम-कन राजत ज्यौं, नव घन सुधा सरोवर खोरे॥
ललित कंठ, बर भुज, बिसाल उर, लेहि कंठ रेखैं चित चोरे॥
अवलोकत मुख देत परम सुख, लेत सरद-ससि की छबि छोरे॥
जटा मुकुट सिर सारस-नयनि, गौहैं तकत सुभोह सकोरे॥
सोभा अमित समाति न कानन, उमगि चली चहुँ दिसि मिति फोरे॥
चितवन चकित कुरंग कुरंगिनी, सब भए मगन मदन के भोरे॥
तुलसीदास प्रभु बान न मोचत, सहज सुभाय प्रेमबस थोरे॥
Tulsidas Ji Ki Kavita II तुलसीदास की कविताएं
बिनती भरत करत कर जोरे -तुलसीदास
बिनती भरत करत कर जोरे।
दिनबन्धु दीनता दीनकी कबहुँ परै जनि भोरे॥१॥
तुम्हसे तुम्हहिं नाथ मोको, मोसे, जन तुम्हहि बहुतेरे।
इहै जानि पहिचानि प्रीति छमिये अघ औगुन मेरे॥२॥
यों कहि सीय-राम-पाँयन परि लखन लाइ उर लीन्हें।
पुलक सरीर नीर भरि लोचन कहत प्रेम पन कीन्हें॥३॥
तुलसी बीते अवधि प्रथम दिन जो रघुबीर न ऐहौ।
तो प्रभु-चरन-सरोज-सपथ जीवत परिजनहि न पैहौ॥४॥
Tulsidas Ji Ki Kavita II तुलसीदास की कविताएं
श्री रामचँद्र कृपालु भजु मन -तुलसीदास
श्री रामचँद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर कंज, पद कंजारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरद सुंदरम्।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक-सुतानरम्।।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्य-वंश-निकंदनम्।
रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नंदनम्।।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणम्।
आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खर-दूषणम्।।
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन रंजनम्।
मम् हृदय-कंज-निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनम्।।
- भारत महिमा -जयशंकर प्रसाद
- हिमाद्रि तुंग श्रृंग से -जयशंकर प्रसाद
- सब जीवन बीता जाता है -जयशंकर प्रसाद
- आह ! वेदना मिली विदाई -जयशंकर प्रसाद
- अरुण यह मधुमय देश हमारा -जयशंकर प्रसाद
- आत्मकथ्य -जयशंकर प्रसाद
- तुम कनक किरन -जयशंकर प्रसाद
- बीती विभावरी जाग री -जयशंकर प्रसाद
- दो बूँदें -जयशंकर प्रसाद
- चित्राधार -जयशंकर प्रसाद
- लहर- जयशंकर प्रसाद
- अशोक की चिन्ता- जयशंकर प्रसाद
- ले चल वहाँ भुलावा देकर- जयशंकर प्रसाद
- निज अलकों के अंधकार में- जयशंकर प्रसाद
- मधुप गुनगुनाकर कह जाता- जयशंकर प्रसाद
- अरी वरुणा की शांत कछार- जयशंकर प्रसाद
- हे सागर संगम अरुण नील- जयशंकर प्रसाद
- उस दिन जब जीवन के पथ में- जयशंकर प्रसाद
- आँखों से अलख जगाने को- जयशंकर प्रसाद
- आह रे,वह अधीर यौवन- जयशंकर प्रसाद
- तुम्हारी आँखों का बचपन- जयशंकर प्रसाद
- अब जागो जीवन के प्रभात- जयशंकर प्रसाद
- कोमल कुसुमों की मधुर रात- जयशंकर प्रसाद
- कितने दिन जीवन जल-निधि में- जयशंकर प्रसाद
- मेरी आँखों की पुतली में- जयशंकर प्रसाद