Inspirational Story दुःखी कौआ-प्रेरणादायक कहानी
दुःखी कौआ-प्रेरणादायक कहानी
एक बार की बात है, एक कौआ बहुत दुखी रहता था। वह अपनी जिंदगी से बहुत परेशान और हमेशा उदास रहता था। वह तो दुखी रहता ही था और उसके इस व्यवहार से आस पास के पक्षी भी उदास और दुखी हो जाते। उस कौआ के दुःख का कारण उसके शरीर का काला रंग, वह अपने काले रंग से बहुत दुखी था। वह सोचता था की बाकी पक्षियां कितने सुन्दर है, सबके कितने अच्छे रंग है, लेकिन भगवान् ने मुझे ही रंग काला क्यों दिया ? उसकी यह सोच उसे बहुत दुखी कर देती थी।
इस कौवे की मनोव्यथा एक ऋषि को पता चला तो ऋषि बोले की तुम्हे कौन से रंग का शरीर चाहिए, मैं अपने तपोबल से तुम्हारा शरीर मनचाहे रंग का कर सकता हूँ। तो कौवा काफी सोचने के बाद बोला, मुझे सफ़ेद रंग बहुत अच्छा लगता है मुझे हंस के जैसे सफ़ेद रंग का बना दीजिये। ऋषि महाराज जी बोले की एक बार पहले हंस से पूँछ तो लो की वो अपने रंग से खुश है की नहीं।
कौआ हंस के पास गया और बोला की आप तो बहुत खुश रहते होंगे, आप का कितना अच्छा रंग है, एकदम सफ़ेद रंग कितना सुन्दर है। सफ़ेद रंग शांति का प्रतीक है। आप बहुत खुशकिस्मत है की आपको इतना अच्छा रंग मिला।
यह सब सुनने के बाद हंस बोला की अरे सफ़ेद रंग भी कोई रंग होता है। मरने के बाद का रंग है। मैं तो अपने रंग से बहुत दुखी हूँ, कोई रस नहीं बेरस रंग है मेरा। मुझे अपने रंग पे तो बहुत गुस्सा आता है, और कितना अभागा हूँ की मुझे यह रंग मिला। कौवा बोला की तो फिर किसका रंग अच्छा है, कौन अपने रंग से खुश होगा, हंस बोला की तोता, तोते का रंग एकदम सुन्दर है हरा रंग।
कौआ ऋषि के पास जा के बोला की उसे तोते के जैसा हरा रंग दे दीजिये। ऋषि बोले की एक बार तुम तोते के पास भी पूँछ लो की क्या तोता अपने रंग से खुश है की नहीं।
कौआ तोते पास जा कर बोला की तुम तो बहुत खुश होंगे कितना सुन्दर रंग है तुम्हारा, हरा रंग कितना सुन्दर है, तुम्हे तो सब लोग अपने घरो में पलना भी चाहते है, कितना प्यारा लगता है ये रंग, तुम तो बड़े भाग्यशाली हो की भगवान् ने तुम्हे इतना अच्छा रंग दिया है।
तोता बोला अरे क्या रंग है सिर्फ एक रंग वो भी हरा, मोर को देखो कितना सुन्दर दिखता है। उसके पास कितने रंग है एक रंगीन, कितना प्यारा दीखता है। लोग इसे देखने के लिए आते है। मेरा रंग तो पेड़ की पत्तियों जैसा है कभी - कभी तो दिखता भी नहीं। पता ही नहीं चलता है मै बैठा भी हूँ की नहीं। मुझे तो अपने रंग से बहुत चिढ आता है।
कौआ ऋषि के पास जा कर बोला की उसे मोर के रंग का बना दीजिये। मोर का रंग बहुत सुन्दर है। ऋषि बोले की एक बार मोर से पूँछ तो लो की क्या वो अपने रंग से खुश है की नहीं।
कौआ मोर के पास गया और मोर का रंग देख के बहुत खुश हुआ और बोला की कितना सुन्दर रंग है तुम्हरा, सारे सुन्दर रंग तुम्हारे शरीर पे भगवान् ने दिया है। तुम कितने भाग्यशाली हो। लोग तुम्हारी सुंदरता देखने के लिए आते है और तुम्हे देख के बहुत खुश होते है।
मोर बोला, मेरा रंग ही मेरे लिए अभिशाप है। मेरे रंग की वजह से ही लोग मुझे कैद कर चिड़ियाघर में रखते है, और अगर मैं जंगल में रहूं तो बहेलिये की पैनी नजर मेरे पर हमेशा रहती है, न तो ठीक से जी पाता हूँ और न ही मर पाता हूँ। बहेलिया तो मुझे
मारकर मेरे बालो का व्यापार करता है। कितनी दूभर मेरी जिंदगी है, सुंदरता ही मेरे लिए घातक बन गयी है।
कौआ ऋषि के पास आया और ऋषि से माफ़ी माँगा और बोला महाराज मै अपना मूल्य भूल गया था।
इस कहानी की प्रेरणा :
हमें कभी भी किसी से अपनी तुलना नहीं करनी चाहिए। तुलना करने वाला मनुष्य कभी सुखी नहीं रहता है। हमारे पास जो ही है उसी में हमें खुश रहना चाहिये। हमें हमेशा भगवान् का कृतज्ञ होना चाहिए की हमें इतना सबकुछ मिला है। हर खुश दिखने वाले आदमी के जीवन में भी परेशानियाँ होती है। हर आदमी की अपनी अलग अलग परेशानियाँ होती है। खुद में अच्छाई है उससे और बढ़ाने की कोशिश करना चाहिए।
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