Nisha Namantar

Nisha Nimantran Kavita - (निशा  निमंत्रण) Harivanshrai Bachhan

अब निशा देती निमंत्रण!
महल इसका तम-विनिर्मित,
ज्वलित इसमें दीप अगणित!
द्वार निद्रा के सजे हैं स्वप्न से शोभन-अशोभन!
अब निशा देती निमंत्रण!


भूत-भावी इस जगह पर
वर्तमान समाज होकर
सामने है देश-काल-समाज के तज सब नियंत्रण!
अब निशा देती निमंत्रण!
सत्य कर सपने असंभव!--
पर, ठहर, नादान मानव!--

हो रहा है साथ में तेरे बड़ा भारी प्रवंचन!
अब निशा देती निमंत्रण!

हरिवंशराय बच्चन


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