Biography of Sant Gyaneshwar in Hindi
जन्म:- १२७५
जन्म स्थान:- महाराष्ट्र
गुरू:- नीवृतिनाथ
रचना:- ज्ञानेश्वरी, अभंग कविता
दर्शन : नाथ सम्प्रदाय , वैष्णव संप्रदाय
संत ज्ञानेश्वर एक महान संत थे। संत ज्ञानेश्वर का जन्म सन १२७५ में महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के पैठण में हुआ। इनका जन्म कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। इनके पिता का नाम विठ्ठल पंत और माता का नाम रुक्मणि बाई था। ये महान संत नामदेव के समकालीन थे।
इनके पिता भगवान् विठ्ठलनाथ के अनन्य उपासक थे। शादी के बाद इन्होने संन्यास दीक्षा ग्रहण की थी , लेकिन कुछ दिन बाद गुरु की आज्ञा से फिर से गृहस्थआश्रम में प्रवेश करना पड़ा। इस अवस्था में इन्होने निवृत्तिनाथ , ज्ञानदेव तथा सोपान तीन पुत्र और मुक्ताबाई नाम की कन्या हुयी।
इनके पिता के सन्यास से गृहस्थाश्रम में आने की वजह समाज में इनके संतान को ब्राह्मण का दर्जा नहीं दिया गया। आये दिन कुछ न कुछ - कुछ सामाजिक यातना का सामना करना पड़ता था। समाज तो इनके साथ हमेशा अछूतो जैसा व्यवहार था। समाज के इस अपमान जनक बर्ताव से पिता को काफी दुःख हुआ और उन्होंने निर्णय किया की वो उनके संतानो को समाज के इस बर्ताव से छुटकारा दिला कर ही रहेंगे। समाज के द्वारा विठ्ठल पंत को देहत्याग की शर्त रखी गयी। अपने संतानो को ब्राह्मण का दर्जा देने के लिए और समाज के कटु व्यवहार से बचने के माता - पिता दोनों ने देहत्याग कर दिया।
इस तरह ज्ञानदेव और उनके भाई बहन के सर से माता पिता का साया बचपन में ही ख़त्म हो गया। अनाथ बच्चे अब दर दर भटकने लगे और पूजा पाठ करके, योगाभ्यास करके ज्ञानार्जन करने लगे। अपने गुरु और बड़े भाई निवृत्तिनाथ के संगत में ज्ञानदेव ने सारे धर्म ग्रंथ का अध्ध्यन किया और सभी योग शक्तियों को प्राप्त किया।
ज्ञानेश्वर जी के जीवन से जुड़े कई चमत्कार है , इनमे से एक है की उन्होंने अपने शिष्य सचिदानंद के मृत शरीर को पुनः जीवित कर दिया था। एक बार १२ वर्ष की उम्र में ज्ञानेश्वर जी अपने भाईओं और बहन के साथ पैठण में पुजारियों से दया करने गए थे, उनसे बोलने गए थे की उनके साथ समाज में जो व्यवहार हो रहा है वो अच्छा नहीं है। वहाँ भी बच्चे उन पुजारियों के उपहास का पात्र बने। ज्ञानेश्वर जी का और उनके ज्ञान और शक्तियों का भी उपहास किया गया। ज्ञानेश्वर जी ने जीवों पर दया और उनमे भी आत्मा है का ज्ञान देने लगे इस पर क्रोधित पुजारी ने आवेश में आकर बोला अगर तुम पास में जा रहे भैसे के मुँह से वेद मंत्र का उच्चारण करा दो तो हम सभी ब्राह्मण और पैठण के सारे ब्राह्मण तुम्हरे शिष्य बन जायेंगे। १२ साल के ज्ञानेश्वर ने भैंसे के सर पे हाथ रखते ही उसके मुँह से वेद मन्त्र का उच्चारण होने लगा।
इन्हीं चमत्कारों में एक है जिसमे ज्ञानेश्वर जी ने एक कुशल योगी चांगदेव को चुनौती दिया। चांगदेव एक बाघ को अपने वश में कर के अपनी योग शक्तियों से उसपे सवारी करके ज्ञानेश्वर जी से मिलने गये, इसके विपरीत ज्ञानेश्वर भगवान् ने अपने योग शक्तिओं से एक चबूतरे को आपमें वश में करके उस पर बैठ कर मिलने गये। यह देखकर चांगदेव का घमंड चूर - चूर हो गया और वो भी ज्ञानेश्वर जी के शिष्य बन गये।
नामदेव जी ज्ञानेश्वर जी के ही समकक्ष थे। दोनों काफी गहरे मित्र थे और साथ में कई धार्मिक जगहों का भ्रमर किये और लोगो को धर्म के बारे में समझया। कुछ दिन बाद ज्ञानेश्वर सिर्फ २१ वर्ष के उम्र में ही ज्ञानेश्वर जी ने समाधी ले ली।
दर्शन : नाथ सम्प्रदाय , वैष्णव संप्रदाय
संत ज्ञानेश्वर एक महान संत थे। संत ज्ञानेश्वर का जन्म सन १२७५ में महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के पैठण में हुआ। इनका जन्म कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। इनके पिता का नाम विठ्ठल पंत और माता का नाम रुक्मणि बाई था। ये महान संत नामदेव के समकालीन थे।
इनके पिता भगवान् विठ्ठलनाथ के अनन्य उपासक थे। शादी के बाद इन्होने संन्यास दीक्षा ग्रहण की थी , लेकिन कुछ दिन बाद गुरु की आज्ञा से फिर से गृहस्थआश्रम में प्रवेश करना पड़ा। इस अवस्था में इन्होने निवृत्तिनाथ , ज्ञानदेव तथा सोपान तीन पुत्र और मुक्ताबाई नाम की कन्या हुयी।
इनके पिता के सन्यास से गृहस्थाश्रम में आने की वजह समाज में इनके संतान को ब्राह्मण का दर्जा नहीं दिया गया। आये दिन कुछ न कुछ - कुछ सामाजिक यातना का सामना करना पड़ता था। समाज तो इनके साथ हमेशा अछूतो जैसा व्यवहार था। समाज के इस अपमान जनक बर्ताव से पिता को काफी दुःख हुआ और उन्होंने निर्णय किया की वो उनके संतानो को समाज के इस बर्ताव से छुटकारा दिला कर ही रहेंगे। समाज के द्वारा विठ्ठल पंत को देहत्याग की शर्त रखी गयी। अपने संतानो को ब्राह्मण का दर्जा देने के लिए और समाज के कटु व्यवहार से बचने के माता - पिता दोनों ने देहत्याग कर दिया।
इस तरह ज्ञानदेव और उनके भाई बहन के सर से माता पिता का साया बचपन में ही ख़त्म हो गया। अनाथ बच्चे अब दर दर भटकने लगे और पूजा पाठ करके, योगाभ्यास करके ज्ञानार्जन करने लगे। अपने गुरु और बड़े भाई निवृत्तिनाथ के संगत में ज्ञानदेव ने सारे धर्म ग्रंथ का अध्ध्यन किया और सभी योग शक्तियों को प्राप्त किया।
ज्ञानेश्वर जी के जीवन से जुड़े कई चमत्कार है , इनमे से एक है की उन्होंने अपने शिष्य सचिदानंद के मृत शरीर को पुनः जीवित कर दिया था। एक बार १२ वर्ष की उम्र में ज्ञानेश्वर जी अपने भाईओं और बहन के साथ पैठण में पुजारियों से दया करने गए थे, उनसे बोलने गए थे की उनके साथ समाज में जो व्यवहार हो रहा है वो अच्छा नहीं है। वहाँ भी बच्चे उन पुजारियों के उपहास का पात्र बने। ज्ञानेश्वर जी का और उनके ज्ञान और शक्तियों का भी उपहास किया गया। ज्ञानेश्वर जी ने जीवों पर दया और उनमे भी आत्मा है का ज्ञान देने लगे इस पर क्रोधित पुजारी ने आवेश में आकर बोला अगर तुम पास में जा रहे भैसे के मुँह से वेद मंत्र का उच्चारण करा दो तो हम सभी ब्राह्मण और पैठण के सारे ब्राह्मण तुम्हरे शिष्य बन जायेंगे। १२ साल के ज्ञानेश्वर ने भैंसे के सर पे हाथ रखते ही उसके मुँह से वेद मन्त्र का उच्चारण होने लगा।
इन्हीं चमत्कारों में एक है जिसमे ज्ञानेश्वर जी ने एक कुशल योगी चांगदेव को चुनौती दिया। चांगदेव एक बाघ को अपने वश में कर के अपनी योग शक्तियों से उसपे सवारी करके ज्ञानेश्वर जी से मिलने गये, इसके विपरीत ज्ञानेश्वर भगवान् ने अपने योग शक्तिओं से एक चबूतरे को आपमें वश में करके उस पर बैठ कर मिलने गये। यह देखकर चांगदेव का घमंड चूर - चूर हो गया और वो भी ज्ञानेश्वर जी के शिष्य बन गये।
नामदेव जी ज्ञानेश्वर जी के ही समकक्ष थे। दोनों काफी गहरे मित्र थे और साथ में कई धार्मिक जगहों का भ्रमर किये और लोगो को धर्म के बारे में समझया। कुछ दिन बाद ज्ञानेश्वर सिर्फ २१ वर्ष के उम्र में ही ज्ञानेश्वर जी ने समाधी ले ली।