Apne hi manse kuch bole- Atal Bihari Vajpayee

Apne hi manse kuch bole- Atal Bihari Vajpayee 

अपने ही मन से कुछ बोलें -अटल बिहारी वाजपेयी 


अपने ही मन से कुछ बोलें -अटल बिहारी वाजपेयी 
क्या खोया, क्या पाया जग में
 मिलते और बिछुड़ते मग में
 मुझे किसी से नहीं शिकायत
 यद्यपि छला गया पग-पग में
 एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!

पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
 जीवन एक अनन्त कहानी
 पर तन की अपनी सीमाएँ
 यद्यपि सौ शरदों की वाणी
 इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!

जन्म-मरण अविरत फेरा
 जीवन बंजारों का डेरा
 आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
 कौन जानता किधर सवेरा
 अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!

Apne hi manse kuch bole- Atal Bihari Vajpayee IIअपने ही मन से कुछ बोलें -अटल बिहारी वाजपेयी

Read More (और अधिक पढ़े ):

  1. मौत से ठन गई -अटल बिहारी वाजपेयी
  2. दूध में दरार पड़ गई -अटल बिहारी वाजपेयी
  3. रामधारी सिंह दिनकर - कुरुक्षेत्र - तृतीय सर्ग - भाग-5
  4. रामधारी सिंह दिनकर - कुरुक्षेत्र - तृतीय सर्ग - भाग-4
  5. रामधारी सिंह दिनकर - कुरुक्षेत्र - तृतीय सर्ग - भाग-3
  6. रामधारी सिंह दिनकर - कुरुक्षेत्र - तृतीय सर्ग - भाग-2
  7. रामधारी सिंह दिनकर - कुरुक्षेत्र - तृतीय सर्ग - भाग-1
  8. रामधारी सिंह दिनकर - कुरुक्षेत्र - द्वितीय सर्ग - भाग-5
  9. रामधारी सिंह दिनकर - कुरुक्षेत्र - द्वितीय सर्ग - भाग-4
  10. रामधारी सिंह दिनकर - कुरुक्षेत्र - द्वितीय सर्ग - भाग-3
  11. रामधारी सिंह दिनकर - कुरुक्षेत्र - द्वितीय सर्ग - भाग-2
  12. रामधारी सिंह दिनकर - कुरुक्षेत्र - द्वितीय सर्ग - भाग-1
  13. रामधारी सिंह दिनकर - कुरुक्षेत्र - प्रथम सर्ग-भाग-2
 
Previous Post Next Post